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सुबोध सुकृति - मुक्तक

डॉ. सुबोध कुमार तिवारी

डॉ. पूर्णिमाश्री तिवारी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16845
आईएसबीएन :9781613017715

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डा. सुबोध कुमार तिवारी का काव्य-संसार - मुक्तक

दो शब्द


सुबोध जी ने काव्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, कविता, गजल और मुक्तक में रचना की है. यही नहीं उनमें विषयों की विभिन्नता है, जैसे राष्ट्र प्रेम, सामाजिक सरोकार, पर्यावरण, मानवता, आर्थिक, राजनैतिक और चिकित्सा आदि सम्बन्धी समस्या और साथ में उनका गंभीर तथा तार्किक विश्लेषण भी है।

जब कभी उनसे भेंट हुई, मेरे अनुरोध पर उन्होंने कविताएँ सुनाईं और जब प्रकाशन के लिये कहा तो मुस्कराकर कह देते 'अवश्य करूँगा' और बात टाल देते। उनके समीप के लोगों को ही मालुम था कि वे कविता लिखते हैं। वे प्रचार-प्रसार से दूर 'स्वान्तः सुखाय' के प्रबल पक्षधर, शान्त तथा सरल स्वभाव के धनी और पद-प्रतिष्ठा के दिखावे से मुक्त थे। प्रदेश के शासकीय चिकित्सक के पद पर पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन किया। किसी साहित्यिक मंच अथवा विचारधारा से कभी अपने को बाँधा नहीं और न ही कीर्ति की दौड़ में सम्मिलित हुये।

सुबोध आसपास से सदैव जुड़े रहे जिसके फलस्वरूप उनकी रचनाओं में मिट्टी की सोंधी महक है। जो देखा, जिया और भोगा उसे अपनी अभिव्यक्ति का आधार बनाया इसीलिये उनकी रचनाओं में स्वाभाविकता, नैसर्गिकता तथा हृदयों को झंकृत करने की असीम क्षमता है। उनकी रचनाओं में रिश्तों की सुगंध, निजी सम्बंधों की उषाई किरने, जीवन के कस्तूरिया लम्हों की गमकती अनुभूतियाँ हैं।

सहज अभिव्यक्ति कवि के लिये पूजा और सरल शब्दावली अर्चना है। मानव जिन विकृतियों, विसंगतियों और विभीषिकाओं से गुजर रहा है, इससे संवेदनशील कवि सुबोध अपने को असंपृक्त नहीं रख सके जिसके कारण उनकी रचनाओं में सामाजिक तथा सांस्कृतिक टूटन तथा बिखराव की प्रतिध्वनियाँ बिखरी हैं।

सुबोध की गुजलें रुहानी खुशबू में डूबी हुई, काफिये की चाँदनी में लिपटी और रदीफ के इन्द्रधनुषी रंग में रंगी हुई हैं। सुबोध जी संघर्षपूर्ण जीवन में आये संत्रास, दर्द और तनाव के तूफान में तिनके के समान बहे नहीं बल्कि आत्मविश्वास के साथ जूझते रहे-खड़़े रहे और इन्सानियत एवं भाईचारे को पहल की।

साहित्य सृजन सुबोध के लिये व्यवसाय नहीं बल्कि अनुराग था जिसमें अतीव उत्साह और समर्पण की भावना के साथ जीवनपर्यन्त लगे रहे। उनकी कविताओं में कोई विद्रोह या क्रान्ति के तेवरों की तलाश उचित नहीं। कवि नदियों का बहाव मोड़ने की कोशिश नहीं करता बल्कि संवेदनाओं के साथ बहता है शायद इसीलिये स्नेह एवं प्रेम के मार्मिक प्रसंगों में कवि के दिल की धड़कनें और साँसों की नरम गरमाहट है।

मुझे विश्वास है कि सुबोध सुकृति के काव्य संकलनों की अतुलनीय भाव सम्पदा, वैचारिक प्रगाढ़ता और प्रभावशाली शिल्प को पाठकों का प्यार-दुलार अवश्य मिलेगा।

स्नेहमयी डा. पूर्णिमा को सुबोध सुकृति के काव्य संकलनों के प्रकाशन के लिये ढेर सारा आशीर्वाद ।

- श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी
अध्यक्ष
हिन्दी साहित्य परिषद
सरी, कनाडा

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